Yamuna Chalisa – श्री यमुना चालीसा

॥ दोहा ॥

प्रियसंग क्रीड़ा करत नित, सुखनिधि वेद को सार ।

दरस परस ते पाप मिटे, श्रीकृष्ण प्राण आधार ॥

यमुना पावन विमल सुजस, भक्तिसकल रस खानि ।

शेष महेश वदंन करत, महिमा न जाय बखानि ॥

पूजित सुरासुर मुकुन्द प्रिया, सेवहि सकल नर-नार ।

प्रकटी मुक्ति हेतु जग, सेवहि उतरहि पार ॥

बंदि चरण कर जोरी कहो, सुनियों मातु पुकार ।

भक्ति चरण चित्त देई के, कीजै भव ते पार ॥

॥ चौपाई ॥

जै जै जै यमुना महारानी । जय कालिन्दि कृष्ण पटरानी ॥

रूप अनूप शोभा छवि न्यारी । माधव-प्रिया ब्रज शोभा भारी ॥

भुवन बसी घोर तप कीन्हा । पूर्ण मनोरथ मुरारी कीन्हा ॥

निज अर्धांगी तुम्ही अपनायों । सावँरो श्याम पति प्रिय पायो ॥

रूप अलौकिक अद्भूत ज्योति । नीर रेणू दमकत ज्यूँ मोती ॥

सूर्यसुता श्यामल सब अंगा । कोटिचन्द्र ध्युति कान्ति अभंगा ॥

आश्रय ब्रजाधिश्वर लीन्हा । गोकुल बसी शुचि भक्तन कीन्हा ॥

कृष्ण नन्द घर गोकुल आयों । चरण वन्दि करि दर्शन पायों ॥

सोलह श्रृंगार भुज कंकण सोहे । कोटि काम लाजहि मन मोहें ॥

कृष्णवेश नथ मोती राजत । नुपूर घुंघरू चरण में बाजत ॥

मणि माणक मुक्ता छवि नीकी । मोहनी रूप सब उपमा फिकी ॥

मन्द चलहि प्रिय-प्रीतम प्यारी । रीझहि श्याम प्रिय प्रिया निहारी ॥

मोहन बस करि हृदय विराजत । बिनु प्रीतम क्षण चैन न पावत ॥

मुरलीधर जब मुरली बजावैं । संग केलि कर आनन्द पावैं ॥

मोर हंस कोकिल नित खेलत । जलखग कूजत मृदुबानी बोलत ॥

जा पर कृपा दृष्टि बरसावें । प्रेम को भेद सोई जन पावें ॥

नाम यमुना जब मुख पे आवें । सबहि अमगंल देखि टरि जावें ॥

भजे नाम यमुना अमृत रस । रहे साँवरो सदा ताहि बस ॥

करूणामयी सकल रसखानि । सुर नर मुनि बंदहि सब ज्ञानी ॥

भूतल प्रकटी अवतार जब लीन्हो । उध्दार सभी भक्तन को किन्हो ॥

शेष गिरा श्रुति पार न पावत । योगी जति मुनी ध्यान लगावत ॥

दंड प्रणाम जे आचमन करहि । नासहि अघ भवसिंधु तरहि ॥

भाव भक्ति से नीर न्हावें । देव सकल तेहि भाग्य सरावें ॥

करि ब्रज वास निरंतर ध्यावहि । परमानंद परम पद पावहि ॥

संत मुनिजन मज्जन करहि । नव भक्तिरस निज उर भरहि ॥

पूजा नेम चरण अनुरागी । होई अनुग्रह दरश बड़भागी ॥

दीपदान करि आरती करहि । अन्तर सुख मन निर्मल रहहि ॥

कीरति विशद विनय करी गावत । सिध्दि अलौकिक भक्ति पावत ॥

बड़े प्रेम श्रीयमुना पद गावें । मोहन सन्मुख सुनन को आवें ॥

आतुर होय शरणागत आवें । कृपाकरी ताहि बेगि अपनावें ॥

ममतामयी सब जानहि मन की । भव पीड़ा हरहि निज जन की ॥

शरण प्रतिपाल प्रिय कुंजेश्वरी । ब्रज उपमा प्रीतम प्राणेश्वरी ॥

श्रीजी यमुना कृपा जब होई । ब्रह्म सम्बन्ध जीव को होई ॥

पुष्टिमार्गी नित महिमा गावैं । कृष्ण चरण नित भक्ति दृढावैं ॥

नमो नमो श्री यमुने महारानी । नमो नमो श्रीपति पटरानी ॥

नमो नमो यमुने सुख करनी । नमो नमो यमुने दु: ख हरनी ॥

नमो कृष्णायैं सकल गुणखानी । श्रीहरिप्रिया निकुंज निवासिनी ॥

करूणामयी अब कृपा कीजैं । फदंकाटी मोहि शरण मे लीजैं ॥

जो यमुना चालिसा नित गावैं । कृपा प्रसाद ते सब सुख पावैं ॥

ज्ञान भक्ति धन कीर्ति पावहि । अंत समय श्रीधाम ते जावहि ॥

॥ दोहा ॥

भज चरन चित सुख करन, हरन त्रिविध भव त्रास ।

भक्ति पाई आनंद रमन, कृपा दृष्टि ब्रज वास ॥

यमुना चालिसा नित नेम ते, पाठ करे मन लाय ।

कृष्ण चरण रति भक्ति दृढ, भव बाधा मिट जाय ॥

Previous Oh Ji Mahara Khatu Wala Shyam – ओह जी महारा खाटू वाला श्याम

TheBhajan.com. All Rights Reserved